शरीर को बीमारियों से लड़ने में मदद करती है टाटरी, भोजन को सुरक्षित भी रखती है, रोचक है इसका इतिहास

हाइलाइट्स

आयुर्वेद में भी टाटरी को गुणकारी बताया गया है और इसकी तासीर गर्म होती है.
टाटरी को पानी में डालकर उससे गरारे किए जाएं तो यह गले को दुरुस्त करती है.

Swad Ka Safarnama: टाटरी एक ऐसा मसाला है, जिसका नाम सुनते ही मुंह में पानी भर जाता है. अगर आप कोई खट‌्टा या खट्टी-मीठी रेडिमेड डिश जैसे जैली, कैंडी खा रहे हैं या गोलगप्पे का चटपटा पानी पी रहे हैं, तो इस बात की पूरी संभावना है कि उसमें टाटरी मिलाई गई हो. यह किसी भी आहार में खट्टापन लाकर उसमें स्वाद भर देती है. टाटरी की प्रकृति एंटीऑक्सीडेंट मानी जाती है, जो शरीर को बीमारियों से लड़ने में मदद करती है. भोजन को प्रसंस्कृत (Preservative) करने में अहम भूमिका निभाती है टाटरी. रोचक है इसका इतिहास.

इसका स्वाद जुबान-दिमाग में झनझनाहट भर देगा

भोजन के लिए टाटरी (Citric Acid) एक अलग सा मजेदार तत्व है. इसमें वह खट्टापन है जो जुबान और दिमाग में झनझनाहट भर देता है. भोजन या किसी भी डिश को खट्टा करने के लिए किचन में बहुत कुछ होता है, लेकिन टाटरी उनसे एकदम अलग है. टाटरी मुख्य रूप से दानेदार या पाउडर दोनों रूप में मिलती है और इसमें कोई गंध नहीं होती. यह एक हल्का एसिड है जो प्राकृतिक रूप से नीबू, संतरे, अंगूर और अन्य खट्टे फलों के रस को प्रोसेस्ड कर तैयार किया जाता है. सनसनाहट पैदा करने वाले कोल्ड ड्रिंक्स, गोलगप्पे का पानी, कैंडी, जैली, जिलेटिन आदि में इसका उपयोग होता है. इसके अलावा ढोकला, नमकीन, छैना या पनीर बनाने, चाट मसाले में भी इसका उपयोग होता है. खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक सुरक्षित व संरक्षित रखने के लिए टाटरी अब एक अनिवार्य तत्व बन चुकी है.

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प्राचीन व रोमन सभ्यता में प्रयोग में लाई गई

टाटरी के इतिहास को लेकर कई किंतु-परंतु हैं लेकिन इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि प्राचीन यूनानी व रोमन सभ्यता में इसका प्रयोग किया जा रहा था. लेकिन यह कन्फर्म है कि स्वीडिश जर्मन फार्मास्युटिकल रसायन विज्ञानी कार्ल विल्हेम शीले (9 दिसम्बर 1742-21 मई 1786) ने कार्बनिक अम्ल टार्टरिक एसिड की खोज की, जिसे टाटरी कहा जाता है. विश्वकोश ब्रिटेनिका के अनुसार शीले ने नींबू के रस से टाटरी बनाई थी.

Citric Acid

टाटरी का रेग्युलर सेवन से बचना चाहिए, वरना शरीर के लिए यह परेशानी पैदा कर सकती है. Image-Canva

इसका उपयोग खट्टे आहार में विशेष स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है. ऐसा भी माना जाता है कि नाइजीरिया और सूडान में अंगूर व खुबानी से टाटरी बनाई गई थी. भारत की रसोई में टाटरी का प्रयोग विशिष्ट तौर पर किया जाता है, लेकिन स्पेनिश, पुर्तगाली व मैक्सिकन व्यंजनों में विशेष स्वाद भरने के लिए टाटरी खूब उपयोग में लाई जाती है.

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रक्त को शुद्ध करने के भी गुण हैं इसमें

विशेष बात यह है कि आयुर्वेद में भी टाटरी को गुणकारी बताया गया है. यह कफ और वात दोनों दोषों को नियंत्रित करती है. इसकी तासीर गर्म होती है. इसमें कृमिनाशक, क्षुधावर्धक, निर्जलीकरणरोधी, परजीवीरोधी, जीवाणुरोधी गुण तो होते ही हैं, साथ ही यह रक्त को भी शुद्ध करती है. फूड एक्सपर्ट का कहना है कि टाटरी की प्रकृति एंटीऑक्सीडेंट है. यह शरीर को बीमारियों से लड़ने में मदद करती है. यह शरीर में एसिड के स्तर को संतुलित करने में भी सहयोग करती है. इसमें विटामिन सी भी पर्याप्त मात्रा में होता है, जो शरीर को संक्रमण से बचाता है.

यह स्किन के लिए फायदेमंद है क्योंकि यह मृत कोशिकाओं को हटाने और नई कोशिकाओं के उत्पादन में तेजी लाने में मदद करती है. माना जाता है कि अगर शरीर में मिनरल्स की मात्रा बढ़ जाए तो यह उसे संतुलित कर देती है. टाटरी को पानी में डालकर उससे गरारे किए जाएं तो यह गले को दुरुस्त कर देती है. टाटरी का रेग्युलर सेवन से बचना चाहिए, वरना शरीर के लिए यह परेशानी पैदा कर सकती है. यह तीखी खट्टी होती है, इसलिए टाटरी का अधिक सेवन पाचन सिस्टम को बिगाड़ देगा, उलटी भी हो सकती है ओर लूजमोशन भी हो सकते हैं. इसका अधिक सेवन स्किन में जलन पैदा कर सकता है.

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