बांसखो के झर्रों की खूब है डिमांड… 300 साल पुराना है यह कारोबार, लोहारों के हाथ हुनर कमाल

कालूराम जाट/दौसा: जयपुर से 40 किलोमीटर और दौसा से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बांसखो क्षेत्र के लोहारों द्वारा निर्मित झर्रे राज्य में ही नहीं बल्कि अन्य राज्य में भी मशहूर हैं. मुंशी लोहार ने बताया कि हमारे द्वारा निर्मित झर्रे यहां की पहचान हैं. यह झर्रे हमारे पूर्वजों के द्वारा कम से कम 300 सालों से बनाई जा रही हैं. बांसखो में झर्रे हलवाईयों के लिए बनाई जाती है. यहां अलग-अलग तरह से छोटी से लेकर बड़ी तक सभी तरह की झर्रे बनाई जाती हैं. यहां की बने झर्रे लोग दुकानों पर लेकर जाते हैं और दुकानों से बेची जाती है. अलग-अलग मिठाई के लिए अलग-अलग झर्रे बनाई जाती है.

झर्रोंकी कीमत ₹100 से लेकर ₹500 प्रति पीस तक है. यहां की झर्रे को लोग जान-पहचान वालों से फोन पर भी मंगाते हैं. इतना ही नहीं झर्रे यहां से दूर-दूर तक सप्लाई की जाती है. बांसखों क्षेत्र के लोगों का सबसे बड़ा हाथ का हुनर है और हाथ के हुनर में सबसे ज्यादा कार्य लोहे का किया जाता है, यहां स्थानीय लोगों ने इसे अपना व्यवसाय बना रखा है जो इनकी आय का स्रोत है.

कृषि क्षेत्र है बांसखों 
यहां के लोहारों के द्वारा हलवाई के काम आने वाले सामान जैसे बगुना, पड़चा, बाल्टी, गमले औरचम्मच आदि प्रकार के सभी सामान बनाए जाते हैं. कई सामान सीजनेबल भी रहते हैं. बांसखों क्षेत्र कृषि क्षेत्र है. यहां आस-पास कृषि बहुत की जाती है. कृषि को लेकर यहां पर यहां के बंदूक्या के द्वारा कृषि में काम आने वाले यंत्र भी बनाए जाते हैं. खुरपा, कुल्हाड़ी आदि किसानों के काम आने वाले यंत्र हैं जो यहां के लोहारों द्वारा यहां के आस-पास के लोगों की जरूरत के अनुसार सभी यंत्र बनाए जाते है. यहां बनी झर्रों की डिमांड गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में रहती है.

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FIRST PUBLISHED : July 12, 2023, 11:43 IST

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