क्‍या सच में सतखंडा मनहूस है? बादशाह की वंशज ने दिया ये जवाब, जानें अवध की अधूरी इमारत का इतिहास

ऋषभ चौरसिया/लखनऊ: सतखंडा लखनऊ का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है, जो कि अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. यह अवध की एक अधूरी इमारत है. इसका निर्माण अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह बहादुर ने 1842 में शुरू किया था, लेकिन यह पूरा नहीं को सका. सतखंडा का शाब्दिक अर्थ होता है ‘सात मंजिला’.

यह भवन मूल रूप से सात मंजिलों की योजना के साथ बनाया गया था. बेगमात रॉयल फैमिली ऑफ अवध की अध्यक्ष प्रिंसेस फरहाना मालिकी (बादशाह की सातवीं वंशज) ने बताया कि यह इमारत महिलाओं के लिए ईद और मोहर्रम के चांद को देखने के लिए बनाई जा रही थी. हालांकि इसका निर्माण पूरा नहीं हो सका.

बेगम ने माना था मनहूस
बता दें कि बादशाह की मृत्यु के बाद इस इमारत का निर्माण अधूरा रह गया. उस समय की मान्यता के अनुसार, अगर बादशाह की मृत्यु इमारत के निर्माण के दौरान हो जाती थी, तो उसे मनहूस माना जाता था. इसलिए बादशाह की बेगम और घर की महिलाओं ने इस इमारत को मनहूस मानकर पूरा नहीं करने दिया. फरहाना मालिकी का कहना है कि इस इमारत में कोई मनहूसियत नहीं है. यह सिर्फ एक मान्यता है जो लोगों ने बनाई है. उनका कहना है कि अगर यह सच होता, तो आज भी लोग सतखंडा के ऊपर से ईद या मोहर्रम का चांद क्यों देखते.

देश-विदेश से टूरिस्ट आते है घूमने
सतखंडा को आज लोग दूर दूर से देखने आते हैं और टूरिस्ट को ये खूब भाता है. बेशक इसका निर्माण अधूरा रह गया, लेकिन आज भी यह अपनी ऐतिहासिक और अपनी अधूरी कहानी के साथ खड़ा है. यह अवध के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. अगर आप भी यहां पर घूमना चाहते हैं, तो आपको सतखंडा, हुसैनाबाद ट्रस्ट रोड पर आना होगा. वहीं, आप चारबाग रेलवे स्टेशन से ऑटो, कैब या फिर बस द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं.

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